कथा : श्याम बाबा की सभी कथाएं

लाक्षागृह की घटना में प्राण बचाकर वन-वन भटकते पांडवों की मुलाकात हिडिंबा नाम की राक्षसी से हुआ। यह भीम को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थी। माता कुंती की आज्ञा से भीम और हिडिंबा का विवाह हुआ जिससे घटोत्कच का जन्म हुआ। घटोत्कच का पुत्र हुआ बर्बरीक जो अपने पिता से भी शक्तिशाली और मायावी था।

1. बर्बरीक देवी का उपासक था। देवी के वरदान से उसे तीन दिव्य बाण प्राप्त हुए थे जो अपने लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते थे। इनकी वजह से बर्बरीक अजेय हो गया था।

2. महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक युद्ध देखने के इरादे से कुरुक्षेत्र आ रहा था। श्रीकृष्ण जानते थे कि अगर बर्बरीक युद्ध में शामिल हुआ तो परिणाम पाण्डवों के विरुद्ध होगा। बर्बरीक को रोकने के लिए श्री कृष्ण गरीब ब्राह्मण बनकर बर्बरीक के सामने आए। अनजान बनते हुए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछ कि तुम कौन हो और कुरुक्षेत्र क्यों जा रहे हो। जवाब में बर्बरीक ने बताया कि वह एक दानी योद्धा है जो अपने एक बाण से ही महाभारत युद्ध का निर्णय कर सकता है। श्री कृष्ण ने उसकी परीक्षी लेनी चाही तो उसने एक बाण चलाया जिससे पीपल के पेड़ के सारे पत्तों में छेद हो गया। एक पत्ता श्रीकृष्ण के पैर के नीचे था इसलिए बाण पैर के ऊपर ठहर गया।

3. श्रीकृष्ण बर्बरीक की क्षमता से हैरान थे और किसी भी तरह से उसे युद्ध में भाग लेने से रोकना चाहते थे। इसके लिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि तुम तो बड़े पराक्रमी हो मुझ गरीब को कुछ दान नहीं दोगे। बर्बरीक ने जब दान मांगने के लिए कहा तो श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश मांग लिया। बर्बरीक समझ गया कि यह ब्राह्मण नहीं कोई और है और वास्तविक परिचय देने के लिए कहा। श्रीकृष्ण ने अपना वास्तविक परिचय दिया तो बर्बरीक ने खुशी-खुशी शीश दान देना स्वीकर कर लिया।

4. रात भर भजन-पूजन कर फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को स्नान पूजा करके, बर्बरीक ने अपने हाथ से अपना शीश श्री कृष्ण को दान कर दिया। शीश दान से पहले बर्बरिक ने श्रीकृष्ण से युद्ध देखने की इच्छा जताई थी इसलिए श्री कृष्ण ने बर्बरीक के कटे शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया।

5. युद्ध में विजय श्री प्राप्त होने पर पांडव विजय का श्रेय लेने हेतु वाद-विवाद कर रहे थे। तब श्रीकृष्ण ने कहा की इसका निर्णय बर्बरीक का शीश कर सकता है। बर्बरीक के शीश ने बताया कि युद्ध में श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चल रहा था जिससे कटे हुए वृक्ष की तरह योद्धा रणभूमि में गिर रहे थे। द्रौपदी महाकाली के रूप में रक्त पान कर रही थीं।

6. श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक के उस कटे सिर को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजित होगे तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होगी।

स्वप्न दर्शनोंपरांत बाबा श्याम, खाटू धाम में स्थित श्याम कुण्ड से प्रकट हुए थे। श्री कृष्ण विराट शालिग्राम रूप में सम्वत् 1777 से खाटू श्याम जी के मंदिर में स्थित होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर कर रहे हैं।

क्यों कहते हैं श्री खाटू श्याम को “हारे का सहारा” : श्री खाटू श्याम जी को हारे का सहारा कहा जाता है। इसके पीछे एक कहानी है। जब महाभारत युद्ध हो रहा था तब श्री बर्बरीक ने हारने वाले पक्ष की और से युद्ध में शामिल होने का निर्णय लिया। जब श्री कृष्ण को इसके बारे में पता चला तो उन्हें ये आभाष हो गया की यदि वीर बर्बरीक कौरवों के तरफ हो गए तो युद्ध का परिणाम बदल जायेगा।

श्री कृष्ण ने युक्तिवश वीर बर्बरीक के तीरों को व्यर्थ में ही जाया कर दिया और उनसे उनका शीश दान में मांग लिया। वीर बर्बरीक ने खुशीपूर्वक अपना शीश श्री कृष्णा के चरणों में दान स्वरुप रख दिया। श्री कृष्ण जी ने बर्बरीक की इस भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान दिया की कलयुग में बर्बरीक को श्री श्याम के नाम से घर घर में पूजा जाएगा और जो भी भक्त उनकी शरण में आएगा उसके दुःख दर्द स्वंय श्री कृष्ण दूर करेंगे।

श्री खाटू नगरी में श्याम बाबा का दरबार सजा है। दूर दूर ले भक्त श्री श्याम बाबा की शरण में आते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। महाभारत के युद्ध में हारने वाले पक्ष की और से लड़ने के निर्णय के कारन ही श्री श्याम बाबा को “हारे का सहारा” के नाम से जाना जाता है जो की पुरे विश्व में विख्यात है।

हर वर्ष होली के अवसर पर यहाँ मेला लगता है जहाँ पर देश के दूर दराज के क्षेत्रों से लोग बाबा के दरबार में आते हैं और अपनी मन्नत मांगते हैं। यहाँ पर लोग लंगर लगाते है और श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं, क्योंकी मान्यता है की यहां पर सेवा करने से श्याम बाबा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पैदल श्रद्धालुओं की संख्या काफी अधिक होती है जिनके लिए मार्ग में भंडारा और विश्राम की व्यवस्था श्याम बाबा के श्रद्धालु करते हैं।

कैसे बने बर्बरीक खाटूश्याम जी ?

इनकी कहानी मध्य कालीन महाभारत से शुरू होती है । खाटूश्याम जी पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे वे अतिबलशाली भीम  के पुत्र घटोट्कच और  प्रागज्योतिषपुर (वर्तमान आसाम) के राजा दैत्यराज मूर की पुत्री कामकटंककटा “मोरवी” के पुत्र थे खाटूश्याम जी । खाटू श्याम जी बाल अवस्था से बहुत बलशाली और वीर थे उन्होंने युद्ध कला अपनी माता मोरवी  तथा  भगवान् कृष्ण से सीखी । उन्होंने नव दुर्गा की आराधना करके नव दुर्गा से तीन अनोखे बाण प्राप्त किये थे । इस तरह उन्हें तीन बाण धारी के नाम से जाना जाने लगा । अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किये जो उन्हें तीनो लोको में विजय दिला सकता था  जब महाभारत का युद्ध कोरवो और पांडवो के बिच चल रहा था जब यह बात बर्बरीक को पता चली तो उनकी भी इच्छा युद्ध करने की हुए ।  वे अपनी माता के पास गए और बोले मुझे भी महाभारत का युद्ध करना है तो उनकी माता बोली पुत्र तुम किसकी तरफ से युद्ध करोगे । तब उन्होंने बोला में हारे हुए की तरफ से युद्ध करुगा । जब वह युद्ध करने जा रहे थे उन्हें रास्ते में उन्हें श्री कृष्ण मिले ।  उन्होने पूछा तुम कहा जा रहे हो । तब बर्बरीक ने सारी बात बताई । श्री कृष्ण जी बोले कलयुग में लोग तुम्हे श्याम के नाम से जानेगे  | क्युकी की तुम हारने वाले के साथ हो | क्युकी बर्बरीक का शीश खाटू नगर में दफनाया गया था इसलिए उन्हें खाटूश्याम जी कहते है

निशान क्यों चढ़ाया जाता है? | जाने :- श्याम बाबा ने बलिदान में अपना शीश दान कर दिया था. इसलिए उनके इस बलिदान और विजय पर निशान चढ़ाया जाता हैं. निशान एक ध्वजा होती हैं. जो नीला, केसरी, सफ़ेद और लाल रंग की होती हैं.

खाटू श्याम जी का निशान कैसा होता है

निशान यात्रा: फाल्गुन मेले में निशान यात्रा का भी बहुत बड़ा महत्व है। निशान यात्रा एक तरह की पदयात्रा होती है जिसमे भक्त अपने हाथो में श्री श्याम ध्वज हाथ में उठाकर श्याम बाबा को चढाने खाटू श्याम जी मंदिर तक आते है। इसी श्री श्याम ध्वज को निशान कहा जाता है। मुख्यत यह यात्रा रींगस से खाटू श्याम जी मंदिर तक की जाती है जोकि 18 किमी की यात्रा है।

इस यात्रा के अंतर्गत भक्त अपनी श्रद्धा से अपने-अपने घर से भी शुरू करते हैं। ऐसा माना जाता है कि पैदल निशान यात्रा करके श्याम बाबा को निशान चढाने से बाबा शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना को पूर्ण करते हैं।

इस यात्रा के अंतर्गत भक्त अपनी श्रद्धा से अपने-अपने घर से भी शुरू करते हैं। ऐसा माना जाता है कि पैदल निशान यात्रा करके श्याम बाबा को निशान चढाने से बाबा शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना को पूर्ण करते हैं।

श्याम बाबा को निशान क्यों चढ़ाते हैं? | श्याम बाबा को निशान अर्पण करने की महिमा: सनातन संस्कृति में ध्वज को विजय का प्रतीक माना जाता है। श्री श्याम बाबा के महाबलिदान शीश दान के लिए उन्हें निशान चढ़ाया जाता है। जिसमे उन्होंने धर्म की जीत के लिए दान में अपना शीश ही भगवान श्री कृष्ण को दे दिया था।

निशान का स्वरूप: निशान मुख्यतः केसरी, नीला, सफेद, लाल रंग का झंडा/ध्वज होता है। इन ध्वजाओं पर श्याम बाबा और भगवान श्री कृष्ण के जयकारे और दर्शन के फोटो होते है। कुछ निशानों पर नारियल एवं मोरपंखी भी लगी होती है। इसके सिरे पर एक रस्सी बंधी होती है जिससे यह निशान हवा में लहराता है। वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत अनेक भक्त अब सोने-चांदी के भी निशान श्याम बाबा को अर्पित करने लगे हैं।​​​​​​​

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